एक कविता का वादा है तुमसे : जिंदगी
जीवन क्या है ?
कोई इसे मिट्टी कहता है, तो कोई सोना ! किसी के लिए जीवन उत्सव है तो किसी के लिए अवसर, किसी के लिए समझौता है तो किसी के लिए दुःख का सागर...। सबके लिए जीवन का अपने-अपने अलग-अलग सोच व मायने है।
दार्शनिक भाव से विमर्श करें तो जीवन सरल सहज होते हुए भी किसी रहस्मयी कहानी की अनसुलझी पहेली है। कितनी अजीब बात है जीवन हमारा होते हुए भी इस पर हमारी मर्जी नहीं चलती, हम तो बस इसी मर्जी पर कठपुतली बन नाचते रहते हैं कभी हंसते हुए कभी रोते हुए...।
लीजिए प्रस्तुत है इस रविवार स्तंभ "एक कविता का वादा है तुमसे" के अंतर्गत 'जिंदगी' पर मेरी एक कविता....
दार्शनिक भाव से विमर्श करें तो जीवन सरल सहज होते हुए भी किसी रहस्मयी कहानी की अनसुलझी पहेली है। कितनी अजीब बात है जीवन हमारा होते हुए भी इस पर हमारी मर्जी नहीं चलती, हम तो बस इसी मर्जी पर कठपुतली बन नाचते रहते हैं कभी हंसते हुए कभी रोते हुए...।
लीजिए प्रस्तुत है इस रविवार स्तंभ "एक कविता का वादा है तुमसे" के अंतर्गत 'जिंदगी' पर मेरी एक कविता....
जिंदगी
अच्छे कल की चाह में, आज खोता रहा,
जो मिला उसे भूल, नहीं के लिए रोता रहा।
आरजू करता रहा उजाले की उम्र भर,
न हो सका ऐसा, बीज जो अंधेरे का बोता रहा।
जो चाहा उस राह से अक्सर भटकती रही जिंदगी,
चलती रही अपनी मर्जी से, अनचाहा होता रहा।
क्या कहें इसे बंधन, परंपरा, नजरिया या डर,
जिसका कारण न जाना उन धारणाओं को ढोता रहा।
विवशता थी या अवसरों की नजरअंदाजी,
जाने क्यों अक्सर खुली आंखों से सोता रहा।
-- उमेश कुमार
जो मिला उसे भूल, नहीं के लिए रोता रहा।
आरजू करता रहा उजाले की उम्र भर,
न हो सका ऐसा, बीज जो अंधेरे का बोता रहा।
जो चाहा उस राह से अक्सर भटकती रही जिंदगी,
चलती रही अपनी मर्जी से, अनचाहा होता रहा।
क्या कहें इसे बंधन, परंपरा, नजरिया या डर,
जिसका कारण न जाना उन धारणाओं को ढोता रहा।
विवशता थी या अवसरों की नजरअंदाजी,
जाने क्यों अक्सर खुली आंखों से सोता रहा।
-- उमेश कुमार